भारतीय साहित्य और संस्कृति में छंदों का विशेष स्थान है। छंद एक काव्य रचना का संरचनात्मक और लयात्मक ढाँचा होता है, जो कविता या श्लोक में ताल, लय और गति प्रदान करता है। वेदों, उपनिषदों, और शास्त्रीय काव्य में छंदों का व्यापक उपयोग किया गया है, जो इसे और भी महत्वपूर्ण बनाता है। छंद केवल शब्दों की सजावट नहीं है, बल्कि इसका उद्देश्य पाठ को भावनात्मक और मनोवैज्ञानिक प्रभाव देना होता है।
छंदों की परंपरा भारतीय काव्यशास्त्र का एक अद्वितीय हिस्सा है और इसका महत्व वेदों से लेकर आधुनिक साहित्य तक रहा है। इस लेख में हम जानेंगे कि छंद किसे कहते हैं, छंदों के कितने प्रकार वेदों में बताए गए हैं, और इनका उपयोग कैसे किया जाता है। इसके साथ ही, हम भगवद गीता में श्रीकृष्ण द्वारा दिए गए एक महत्वपूर्ण संदर्भ पर भी चर्चा करेंगे, जिसमें उन्होंने गायत्री छंद की महत्ता को बताया है।
छंद किसे कहते हैं?
छंद का शाब्दिक अर्थ होता है “लय” या “ताल”। यह एक विशेष प्रकार का काव्यात्मक ढाँचा होता है, जिसमें शब्दों की एक निश्चित संख्या, मात्रा, और लय के अनुसार रचना की जाती है। छंद में शब्दों और मात्राओं का संयोजन एक विशेष क्रम में किया जाता है, जिससे काव्य या श्लोक में लय और ताल का समावेश होता है।
संस्कृत साहित्य में छंदों का महत्व अत्यधिक है, और यह वेदों से लेकर महाकाव्यों तक उपयोग में आता है। छंदों का उद्देश्य केवल काव्य को सजीव बनाना नहीं है, बल्कि उसमें निहित भाव और अर्थ को भी प्रभावी ढंग से व्यक्त करना है। भारतीय काव्यशास्त्र में छंदों का उपयोग धार्मिक, आध्यात्मिक, और साहित्यिक रचनाओं में किया जाता रहा है।
छंदों के घटक
छंद मुख्य रूप से तीन प्रमुख घटकों पर आधारित होते हैं:
- मात्रा: मात्रा का अर्थ है ध्वनि की लंबाई। किसी शब्द या अक्षर की मात्रा को नापा जाता है, जो छंद की लय और ताल निर्धारित करती है।
- वृत्त: यह छंद में मात्राओं का एक निश्चित क्रम होता है। हर छंद का एक विशेष वृत्त होता है, जो उसकी संरचना को परिभाषित करता है।
- गण: गण का तात्पर्य मात्रा के समूह से है, जो तीन अक्षरों का एक संयोजन होता है। गण का सही उपयोग छंद की ताल और लय को बनाए रखता है।
वेदों में छंदों के प्रकार
वेदों में छंदों का विशेष महत्व है, क्योंकि वेदों की अधिकांश ऋचाएँ और मंत्र छंदों में ही रची गई हैं। चारों वेद (ऋग्वेद, यजुर्वेद, सामवेद और अथर्ववेद) में कई प्रकार के छंदों का उपयोग किया गया है। प्राचीन वैदिक साहित्य में छंदों को शास्त्रीय रूप से वर्गीकृत किया गया है, जो उनकी लय, मात्रा और अक्षरों की संख्या के आधार पर होते हैं। वेदों में मुख्यतः सात प्रकार के छंदों का उल्लेख किया गया है, जो निम्नलिखित हैं:
1. गायत्री छंद
गायत्री छंद वेदों में सबसे प्रमुख और प्रसिद्ध छंद है। इस छंद में तीन पद होते हैं, और प्रत्येक पद में 8-8 अक्षर होते हैं। कुल मिलाकर 24 अक्षरों का यह छंद होता है। गायत्री छंद का उपयोग मुख्यतः प्रार्थनाओं और मंत्रों में होता है। उदाहरण के लिए, “गायत्री मंत्र” इसी छंद में रचा गया है:
मंत्र:
ॐ भूर्भुवः स्वः तत्सवितुर्वरेण्यं। भर्गो देवस्य धीमहि धियो यो नः प्रचोदयात्॥
भगवद गीता में भी गायत्री छंद का विशेष उल्लेख मिलता है। भगवान श्रीकृष्ण ने गीता के दसवें अध्याय (विभूति योग) में कहा है:
“छन्दसाम् गायत्री अस्मि”
इसका अर्थ है, “मैं सभी छंदों में गायत्री छंद हूँ।”
श्रीकृष्ण द्वारा दिए गए इस संदर्भ से यह स्पष्ट होता है कि गायत्री छंद की महत्ता कितनी गहरी और पवित्र मानी गई है। यह छंद ईश्वर का प्रतीक माना जाता है, और इसके उच्चारण से मन की शुद्धि और आत्मा की उन्नति होती है।
2. अनुष्टुप छंद
अनुष्टुप छंद भी वेदों में अत्यधिक उपयोगी छंद है। यह छंद 32 अक्षरों का होता है, जिसमें प्रत्येक पद में 8-8 अक्षर होते हैं। महाभारत और रामायण के अधिकांश श्लोक अनुष्टुप छंद में ही रचे गए हैं। यह सबसे सामान्य छंद माना जाता है और इसे शास्त्रीय काव्य रचनाओं में भी बड़े पैमाने पर उपयोग किया गया है।
3. त्रिष्टुप छंद
त्रिष्टुप छंद वेदों में सबसे अधिक प्रयुक्त छंदों में से एक है। इसमें प्रत्येक पद में 11 अक्षर होते हैं, और कुल 44 अक्षरों का यह छंद होता है। ऋग्वेद की कई ऋचाएँ इसी छंद में लिखी गई हैं। त्रिष्टुप छंद का उपयोग मुख्यतः श्लोकों और मंत्रों में किया जाता है, जो गंभीर और प्रभावशाली होते हैं।
4. जगती छंद
जगती छंद में प्रत्येक पद में 12 अक्षर होते हैं, और कुल मिलाकर 48 अक्षरों का यह छंद होता है। यह छंद लयबद्ध होता है और इसका उपयोग वेदों और धार्मिक काव्य रचनाओं में होता है। जगती छंद में गति और ताल का विशेष ध्यान रखा जाता है, जो इसे अत्यधिक प्रभावी बनाता है।
5. पंक्ति छंद
पंक्ति छंद में प्रत्येक पद में 10 अक्षर होते हैं, और कुल मिलाकर 40 अक्षरों का यह छंद होता है। यह छंद मुख्य रूप से वेदों के ऋचाओं और स्तुतियों में प्रयुक्त होता है। पंक्ति छंद की विशेषता इसकी सरलता और लयबद्धता है।
6. बृहती छंद
बृहती छंद में प्रत्येक पद में 8 से 12 अक्षर होते हैं, और यह छंद विशेष रूप से सामवेद में पाया जाता है। इसका उपयोग मुख्य रूप से भक्ति और स्तुतियों के गीतों में किया जाता है। बृहती छंद के लय और गति इसे अन्य छंदों से अलग करते हैं।
7. पंक्ति छंद
पंक्ति छंद में कुल 40 अक्षर होते हैं, प्रत्येक पद में 10 अक्षरों के साथ। यह छंद वेदों में गाया गया है और इसका उपयोग विशेष रूप से स्तुतियों और आराधना के श्लोकों में किया गया है।
छंदों का आधुनिक साहित्य में महत्व
छंदों का महत्व केवल वेदों और धार्मिक साहित्य तक ही सीमित नहीं है। आधुनिक हिंदी साहित्य में भी छंदों का उपयोग किया जाता है। कवियों और लेखकों ने छंदों का प्रयोग अपनी कविताओं, गीतों और नाटकों में किया है। छंद काव्य को लय और ताल प्रदान करता है, जिससे कविता की प्रभावशीलता बढ़ती है।
छंदों का उपयोग विशेष रूप से हिंदी साहित्य में मुक्तक और सवैया जैसी काव्य शैलियों में किया गया है। छंदों के बिना कविता नीरस और बिना लय की हो सकती है, इसलिए छंद काव्य की आत्मा के रूप में कार्य करता है। आज के समय में भी कई कवि और साहित्यकार छंदबद्ध कविताएँ लिखते हैं, जो श्रोता और पाठकों को भावनात्मक रूप से छूती हैं।
निष्कर्ष
छंद भारतीय साहित्य का एक महत्वपूर्ण हिस्सा हैं, जिनका उपयोग वेदों से लेकर आधुनिक साहित्य तक व्यापक रूप से किया गया है। छंद न केवल काव्य को लय और ताल प्रदान करता है, बल्कि इसके माध्यम से कविता में गहराई और प्रभावशीलता आती है। वेदों में सात प्रमुख छंदों का उल्लेख मिलता है—गायत्री, अनुष्टुप, त्रिष्टुप, जगती, पंक्ति, बृहती, और पंक्ति—जो आज भी धार्मिक और साहित्यिक रचनाओं में महत्वपूर्ण भूमिका निभाते हैं।
भगवद गीता में श्रीकृष्ण द्वारा गायत्री छंद को सभी छंदों में सर्वोच्च बताया गया है, जो इस छंद की महानता को और भी बढ़ाता है। छंद का महत्व भारतीय संस्कृति और साहित्य में इतना गहरा है कि यह न केवल कविताओं और मंत्रों को सजीव बनाता है, बल्कि हमारे विचारों और भावनाओं को प्रभावी ढंग से व्यक्त करने में भी मदद करता है।