दिवाली, जिसे दीपावली भी कहा जाता है, भारतीय संस्कृति का सबसे भव्य और महत्वपूर्ण त्योहार है। यह पाँच दिवसीय पर्व बुराई पर अच्छाई, अज्ञान पर ज्ञान, और अंधकार पर प्रकाश की विजय का प्रतीक है। विभिन्न धर्मों के लोग इसे अपनी-अपनी मान्यताओं के साथ मनाते हैं, लेकिन सभी के लिए दिवाली का अर्थ जीवन में सुख, समृद्धि और ज्ञान का प्रकाश लाना है। आइए, इस लेख के माध्यम से दिवाली का महत्व, इसकी पौराणिक कथाएँ, विभिन्न धार्मिक परंपराएँ और उत्सव की विविधताएँ जानें।
दिवाली का आध्यात्मिक महत्व
दिवाली का आध्यात्मिक संदेश अत्यंत गहरा और व्यापक है। दीयों की रोशनी अंधकार को दूर भगाने का प्रतीक है, जो हमारे भीतर और बाहर फैले नकारात्मकता और अज्ञानता को हटाकर ज्ञान और सकारात्मकता को आमंत्रित करती है। यह त्योहार आत्मा की उस रोशनी का स्वागत है जो हमें हमारी सच्चाई और आंतरिक शांति का एहसास कराता है। दीयों के जलने के साथ-साथ यह त्योहार एक दूसरे के प्रति प्रेम और सम्मान का भाव भी जगाता है।
दिवाली का पौराणिक और धार्मिक महत्व
दिवाली से जुड़ी अनेक पौराणिक कहानियाँ हैं, जो इसे एक गहरा धार्मिक और सांस्कृतिक महत्व देती हैं। विभिन्न धर्मों में इसे अलग-अलग तरीकों से मनाया जाता है, लेकिन हर धर्म में यह अच्छाई और सकारात्मकता का प्रतीक है।
- हिंदू धर्म में दिवाली
हिंदू धर्म में दिवाली का मुख्य कारण भगवान राम की अयोध्या वापसी है। पौराणिक कथा के अनुसार, भगवान राम, माता सीता और भाई लक्ष्मण 14 वर्षों के वनवास के बाद और लंका के राक्षस राजा रावण का वध करके अयोध्या लौटे थे। उनके स्वागत में अयोध्यावासियों ने दीप जलाए थे। इसके अतिरिक्त, दक्षिण भारत में यह माना जाता है कि इस दिन भगवान कृष्ण ने नरकासुर का वध किया था, जो अंधकार पर प्रकाश और बुराई पर अच्छाई की विजय का प्रतीक है। - जैन धर्म में महावीर निर्वाण दिवस
जैन धर्म के अनुसार, दिवाली के दिन भगवान महावीर ने मोक्ष प्राप्त किया था। इस दिन को महावीर स्वामी के निर्वाण दिवस के रूप में मनाया जाता है। जैन अनुयायी अपने भगवान के निर्वाण की स्मृति में दीप जलाते हैं और पूजा-अर्चना करते हैं ताकि वे भी आत्मज्ञान प्राप्त कर सकें और मोक्ष के मार्ग पर चल सकें। - सिख धर्म में बंदी छोड़ दिवस
सिख धर्म में दिवाली का दिन बंदी छोड़ दिवस के रूप में मनाया जाता है। यह वह दिन है जब सिखों के छठे गुरु, गुरु हरगोबिंद सिंह जी को ग्वालियर के किले से 52 अन्य राजाओं के साथ रिहा किया गया था। गुरु जी के इस पराक्रम के सम्मान में अमृतसर के स्वर्ण मंदिर में दीप जलाए जाते हैं और इसे बड़े धूमधाम से मनाया जाता है।
दिवाली की पौराणिक कथाएँ और कहानियाँ
दिवाली से जुड़ी अनेक पौराणिक कथाएँ हैं, जो इसे एक गहरा धार्मिक और सांस्कृतिक महत्व देती हैं। कुछ महत्वपूर्ण कथाएँ इस प्रकार हैं:
- लक्ष्मी का पुनर्जन्म
दिवाली के दिन समुद्र मंथन के दौरान देवी लक्ष्मी का पुनर्जन्म हुआ था। समुद्र मंथन में देवताओं और असुरों ने अमृत प्राप्त करने के लिए समुद्र मंथन किया, जिसमें से 14 रत्न निकले, जिनमें से एक देवी लक्ष्मी भी थीं। इसी दिन देवी लक्ष्मी ने भगवान विष्णु को अपने पति के रूप में चुना। यही कारण है कि इस दिन लक्ष्मी पूजन का विशेष महत्व है, ताकि देवी लक्ष्मी का आशीर्वाद प्राप्त हो सके और घर में धन-समृद्धि बनी रहे। - भगवान कृष्ण का नरकासुर वध
एक अन्य मान्यता के अनुसार, दिवाली से एक दिन पहले भगवान श्रीकृष्ण ने नरकासुर नामक राक्षस का वध किया था, जिसने तीनों लोकों में आतंक मचा रखा था। नरकासुर के वध के बाद लोगों ने दीप जलाकर खुशी मनाई। इसे “नरक चतुर्दशी” या “छोटी दिवाली” के रूप में मनाया जाता है। - पांडवों की हस्तिनापुर वापसी
महाभारत के अनुसार, कार्तिक अमावस्या की रात को पांडव 12 वर्षों के वनवास और 1 वर्ष के अज्ञातवास के बाद हस्तिनापुर लौटे थे। उनके स्वागत में पूरे नगर को दीपों से सजाया गया। इसे दिवाली पर्व का एक अन्य कारण माना जाता है। - रामायण और महाभारत से प्रेरित अन्य कथाएँ
अयोध्या और ब्रज क्षेत्र में दिवाली को भगवान राम और श्रीकृष्ण के कृत्यों के साथ जोड़कर मनाया जाता है। दिवाली को राम के लंका पर विजय के बाद अयोध्या वापसी के रूप में, तो वहीं ब्रज क्षेत्र में इसे श्रीकृष्ण के नरकासुर वध के उपलक्ष्य में मनाया जाता है।
दिवाली के पाँच दिन और उनकी परंपराएँ
दिवाली का पर्व पाँच दिनों तक चलता है, और हर दिन का अपना महत्व और अनुष्ठान होता है। ये पाँच दिन जीवन में खुशहाली, समृद्धि और प्रेम का प्रतीक माने जाते हैं।
- धनतेरस
दिवाली की शुरुआत धनतेरस से होती है, जो धन और समृद्धि का प्रतीक है। इस दिन लोग सोना, चांदी, आभूषण, बर्तन आदि खरीदते हैं। यह दिन भगवान धन्वंतरि और कुबेर की पूजा के लिए महत्वपूर्ण है। माना जाता है कि इस दिन खरीदी गई वस्तुएँ पूरे वर्ष समृद्धि लाती हैं। - नरक चतुर्दशी (छोटी दिवाली)
दिवाली के एक दिन पहले मनाई जाने वाली यह तिथि नरकासुर के वध के उपलक्ष्य में मनाई जाती है। इस दिन लोग अपने शरीर पर उबटन और तिलक लगाते हैं और स्नान करके खुद को पवित्र करते हैं। इसे शारीरिक और मानसिक शुद्धिकरण का पर्व माना जाता है। - दिवाली (मुख्य पर्व)
दिवाली का मुख्य दिन लक्ष्मी और गणेश की पूजा के लिए समर्पित होता है। इस दिन घरों और मंदिरों में दीप जलाए जाते हैं, नए कपड़े पहने जाते हैं, और मिठाइयों का आदान-प्रदान होता है। लोग अपने घरों को रंग-बिरंगी लाइटों, दीयों और रंगोली से सजाते हैं और रात में पटाखे जलाते हैं। - गोवर्धन पूजा
दिवाली के अगले दिन गोवर्धन पूजा की जाती है। मान्यता है कि इस दिन भगवान श्रीकृष्ण ने गोवर्धन पर्वत को अपनी छोटी उंगली पर उठाकर इंद्र के प्रकोप से लोगों की रक्षा की थी। इस दिन गोवर्धन पूजा और गायों की पूजा की जाती है, जिसे ब्रज क्षेत्र में बड़ी धूमधाम से मनाया जाता है। - भाई दूज
दिवाली का अंतिम दिन भाई दूज के रूप में मनाया जाता है, जिसमें बहनें अपने भाइयों की लंबी उम्र और समृद्धि की कामना करती हैं। भाई अपनी बहनों को उपहार देते हैं, और यह दिन भाई-बहन के प्रेम और स्नेह का प्रतीक है।
भगवती महालक्ष्मी का महात्म्य
भगवती महालक्ष्मी हिंदू धर्म में धन, संपत्ति, सुख-समृद्धि और ऐश्वर्य की देवी मानी जाती हैं। वे चल और अचल दोनों प्रकार की संपत्तियों की स्वामिनी हैं और उनकी कृपा से सभी सिद्धियाँ और निधियाँ प्राप्त होती हैं। महालक्ष्मी को नारायणी कहा गया है, क्योंकि वे भगवान विष्णु की अर्धांगिनी हैं और संसार के पालन के लिए आवश्यक सभी संसाधनों की अधिष्ठात्री हैं। उनके आशीर्वाद से हर प्रकार की सुख-संपदा और समृद्धि प्राप्त होती है, चाहे वह भौतिक हो या आध्यात्मिक।
भगवान श्री गणेश, जिन्हें प्रथम पूज्य देवता माना जाता है, बुद्धि और सिद्धि के स्वामी हैं। वे शुभ-लाभ के प्रतीक माने जाते हैं और किसी भी कार्य में आने वाले विघ्नों और अमंगलों का नाश करते हैं। श्री गणेश का आशीर्वाद मिलने से व्यक्ति को सद्बुद्धि और विवेक की प्राप्ति होती है, जो जीवन के हर क्षेत्र में सफलता का मार्ग प्रशस्त करती है। इस प्रकार, महालक्ष्मी और गणेश के संयुक्त पूजन से जीवन में कल्याण, मंगल, और आनंद की प्राप्ति होती है।
कार्तिक अमावस्या का विशेष महत्व
कार्तिक मास के कृष्ण पक्ष की अमावस्या को दीपावली के रूप में मनाया जाता है, जो भगवती महालक्ष्मी और भगवान गणेश की पूजा के लिए विशेष अवसर माना जाता है। इस दिन नई प्रतिमाओं का प्रतिष्ठापूर्वक पूजन किया जाता है। विशेष पूजन की प्रक्रिया में एक पवित्र चौकी या कपड़े का आसन रखा जाता है, जिस पर गणेशजी के दाहिने ओर माता महालक्ष्मी की प्रतिमा स्थापित की जाती है। यह इस बात का प्रतीक है कि महालक्ष्मी के साथ गणेशजी की उपस्थिति सुख-समृद्धि और शुभ-लाभ को स्थिरता प्रदान करती है।
पूजन की तैयारी और विधि
पूजन के दिन घर को साफ-सुथरा कर, पूजन स्थल को भी पवित्र करना अत्यंत महत्वपूर्ण माना गया है। यह स्वच्छता और पवित्रता देवी-देवताओं का स्वागत करने का प्रतीक मानी जाती है। स्वयं भी स्वच्छ होकर, श्रद्धा और भक्ति के साथ शाम के समय में भगवती महालक्ष्मी और भगवान गणेश का पूजन करना चाहिए।
महालक्ष्मी के पूजन में मूर्ति के पास केसर युक्त चंदन से अष्टदल कमल या स्वस्तिक बनाकर एक पवित्र पात्र या थैली में धन-द्रव्य (जैसे चावल, गेंहू या सिक्के) स्थापित करना चाहिए। इसे द्रव्य-लक्ष्मी के रूप में जाना जाता है, जो जीवन में स्थायी धन और संपत्ति का प्रतीक होती है। अष्टदल कमल और स्वस्तिक शुभता के प्रतीक माने जाते हैं और इनकी उपस्थिति से देवी महालक्ष्मी की कृपा बनी रहती है। इस प्रकार महालक्ष्मी और द्रव्य-लक्ष्मी दोनों की एक साथ पूजा करने से घर-परिवार में सुख-समृद्धि और शांति का वास होता है।
गणेशजी के दाहिने भाग में माता
महालक्ष्मी को स्थापित करना चाहिये
माँ लक्ष्मी के मंत्र और पूजन विधि का महत्व
लक्ष्मी पूजन के मुहरत के अनुसार माँ लक्ष्मी की पूजा की जाती है। शास्त्र मे अनेक विधि विधान है जिनमे कुछ सरल तो कुछ बड़े धार्मिक अनुष्ठान है।
दिवाली के समय माँ लक्ष्मी की पूजा का विशेष महत्व है। उनकी कृपा प्राप्त करने के लिए भक्तगण कुछ खास मंत्रों का जाप करते हैं। इन मंत्रों का उच्चारण ध्यान और भक्ति के साथ किया जाए तो व्यक्ति के जीवन में सुख, समृद्धि और शांति का वास होता है। यहाँ पर माँ लक्ष्मी के कुछ प्रमुख मंत्र दिए गए हैं:
- ऊँ श्रीं ह्रीं श्रीं कमले कमलालये प्रसीद प्रसीद श्रीं ह्रीं श्रीं ऊँ महालक्ष्मी नमः
यह मंत्र माँ लक्ष्मी का बीज मंत्र माना जाता है। इस मंत्र के जाप से जीवन में आर्थिक सुख और वैभव की प्राप्ति होती है। - ऊँ श्रीं ल्कीं महालक्ष्मी महालक्ष्मी एह्येहि सर्व सौभाग्यं देहि मे स्वाहा
इस मंत्र में माँ लक्ष्मी से समृद्धि और सौभाग्य की प्रार्थना की जाती है। माना जाता है कि यह मंत्र माँ लक्ष्मी की कृपा से धन की कमी दूर करता है। - श्रीं ह्रीं क्लीं ऐं कमलवासिन्यै स्वाहा
यह मंत्र धन की देवी लक्ष्मी को प्रसन्न करने के लिए अत्यंत शक्तिशाली माना जाता है। इसे नियमित रूप से जाप करने से घर में धन-धान्य की कमी नहीं होती। - ॐ श्री महालक्ष्म्यै च विद्महे विष्णु पत्न्यै च धीमहि तन्नो लक्ष्मी प्रचोदयात् ॐ
यह मंत्र विशेष रूप से शांति और वैभव की प्राप्ति के लिए उच्चारित किया जाता है। - ॐ ह्रीं श्रीं क्रीं श्रीं कुबेराय अष्ट-लक्ष्मी मम गृहे धनं पुरय पुरय नमः
इस मंत्र का जाप व्यक्ति को आर्थिक समृद्धि, सफलता और स्थिरता प्रदान करता है। इसमें कुबेर और माँ लक्ष्मी दोनों का आह्वान किया जाता है।
मंत्र जाप की विधि और दिन का महत्व
माँ लक्ष्मी की पूजा में इन मंत्रों का उच्चारण शुक्रवार के दिन शुभ माना गया है। इस दिन सुबह स्नान कर सफेद या गुलाबी कपड़े पहनने चाहिए। श्रीयंत्र या माँ लक्ष्मी के चित्र के सामने श्री सूक्त का पाठ करना विशेष लाभकारी माना जाता है। साथ ही, कमल का फूल अर्पित करना भी अत्यंत शुभ होता है।
दिवाली पूजन में इन मंत्रों का महत्व
दिवाली की रात को माँ लक्ष्मी के स्वागत के लिए दीप जलाए जाते हैं और घर को स्वच्छ एवं सुसज्जित किया जाता है। यह माना जाता है कि माँ लक्ष्मी केवल उन घरों में प्रवेश करती हैं, जहाँ पवित्रता और साफ-सफाई होती है। इन मंत्रों का जाप करने से माँ लक्ष्मी प्रसन्न होती हैं और अपने भक्तों को खुशहाली और समृद्धि का आशीर्वाद देती हैं।
गोवर्धन पूजा का पौराणिक महत्व और विधि
दिवाली के अगले दिन गोवर्धन पूजा का विशेष महत्व है। यह पूजा भगवान श्रीकृष्ण द्वारा इन्द्र के प्रकोप से बृजवासियों की रक्षा करने की घटना से जुड़ी है। इस दिन लोग गोवर्धन पर्वत की आकृति बनाकर उसे सजाते हैं और उसकी पूजा करते हैं। गोवर्धन पूजा में विशेष प्रकार की मिठाई और पकवान बनाए जाते हैं, जिन्हें भगवान को अर्पित किया जाता है। इस पूजा में गोधन यानी गायों का भी पूजन किया जाता है, क्योंकि इन्हें देवी लक्ष्मी का प्रतीक माना जाता है।
भाई दूज का महत्व और उत्सव
दिवाली के पाँचवे दिन भाई दूज का त्योहार मनाया जाता है, जो भाई-बहन के रिश्ते का प्रतीक है। इस दिन बहनें अपने भाइयों की लंबी उम्र और समृद्धि की कामना करती हैं। भाई दूज के दिन बहनें अपने भाईयों का तिलक करती हैं और उन्हें मिठाई खिलाती हैं। बदले में भाई अपनी बहनों को उपहार देते हैं।
विश्वकर्मा पूजा और दीयों का महत्व
कुछ क्षेत्रों में दिवाली के चौथे दिन विश्वकर्मा पूजा का भी आयोजन होता है। विश्वकर्मा देव को भवन निर्माण, वास्तुकला, और मशीनों का देवता माना गया है। इस दिन शिल्पकार, निर्माण और कपड़ा उद्योग से जुड़े लोग अपने कार्यक्षेत्र और औजारों की सफाई करके उनकी पूजा करते हैं। दीप जलाकर यह लोग भगवान विश्वकर्मा से अपने काम में सफलता और उन्नति की कामना करते हैं।
दीयों के माध्यम से बुरी आत्माओं को दूर भगाने की मान्यता
दिवाली पर दीये जलाने का एक गहरा प्रतीकात्मक महत्व है। इसे न केवल अंधकार को दूर भगाने के प्रतीक के रूप में देखा जाता है, बल्कि यह भी माना जाता है कि दीपावली की रात जलाए गए दीये नकारात्मक ऊर्जाओं और बुरी आत्माओं को भी दूर भगाते हैं। दीयों के इस प्रकाश से सकारात्मक ऊर्जा का प्रवाह होता है, जिससे घर में शांति, सुख और समृद्धि आती है।
आध्यात्मिक और सांस्कृतिक एकता का पर्व
दिवाली न केवल व्यक्तिगत स्तर पर बल्कि सामुदायिक स्तर पर भी प्रेम, एकता और भक्ति का पर्व है। इस दिन परिवार के सदस्य मिलकर पूजा करते हैं, एक-दूसरे को उपहार देते हैं और अपने प्रेम का इजहार करते हैं। त्योहार के दौरान पूजा, मंत्र जाप, और मिलन समारोह समाज में सांस्कृतिक एकता को बढ़ावा देते हैं और सबके बीच सद्भावना का संचार करते हैं।
इन सभी परंपराओं, मंत्रों, और रीति-रिवाजों का पालन कर हम दिवाली के मूल संदेश को समझ सकते हैं और जीवन में सुख, शांति, समृद्धि और सकारात्मकता ला सकते हैं। दिवाली का यह त्योहार हमें यह सिखाता है कि चाहे कितनी भी कठिनाइयाँ हों, अंत में अंधकार पर प्रकाश, बुराई पर अच्छाई और निराशा पर आशा की ही जीत होती है।
क्षेत्रीय विशेषताएँ और विविधताएँ
भारत के विभिन्न हिस्सों में दिवाली को अपने-अपने ढंग से मनाया जाता है। ये विविधताएँ इस पर्व की सुंदरता और विशेषता को और बढ़ा देती हैं।
- पश्चिम बंगाल और ओडिशा में काली पूजा
यहाँ लोग दिवाली के दिन देवी काली की पूजा करते हैं, जिसे काली पूजा कहा जाता है। शक्तिवाद के अनुसार, देवी काली को सर्वोच्च देवी माना गया है और इस दिन उनकी विशेष पूजा की जाती है। - महाराष्ट्र और गुजरात में नववर्ष
महाराष्ट्र और गुजरात में दिवाली को नए साल की शुरुआत के रूप में भी देखा जाता है। व्यापारी इस दिन अपने पुराने बहीखाते बदलते हैं और नए साल का स्वागत करते हैं। - तमिलनाडु में देवी लक्ष्मी की पूजा
दक्षिण भारत में लोग इस दिन देवी लक्ष्मी की पूजा करते हैं और अपने घरों में नई चीजों की खरीदारी को शुभ मानते हैं।
दिवाली की तैयारियाँ और उत्सव का आनंद
दिवाली से पहले लोग अपने घरों की साफ-सफाई और सजावट में लगे रहते हैं। घरों को रंगोली, तोरण, फूलों और दी
यों से सजाया जाता है। यह माना जाता है कि माँ लक्ष्मी उन्हीं घरों में प्रवेश करती हैं जो स्वच्छ और सुसज्जित होते हैं। परिवार के लोग मिलकर आतिशबाजी का आनंद लेते हैं, बच्चों के लिए पटाखे और फुलझड़ियों का आयोजन होता है, और परिजन मिठाई, उपहार और प्रेम का आदान-प्रदान करते हैं।
दिवाली का आर्थिक और सामाजिक महत्व
दिवाली भारत में सबसे बड़ा शॉपिंग सीजन है। लोग घर के नए सामान, आभूषण, कपड़े, उपहार और बर्तन जैसी वस्तुएँ खरीदते हैं। इस दौरान मिठाई, सूखे मेवे, और आतिशबाजी की खरीददारी अपने चरम पर होती है। यह त्योहार न केवल व्यक्तिगत स्तर पर खुशियाँ लाता है, बल्कि छोटे व्यापारियों और दुकानदारों के लिए भी यह एक बहुत बड़ा अवसर है।
पर्यावरण और स्वास्थ्य के प्रति जागरूकता
दिवाली के दौरान आतिशबाजी का प्रचलन काफी आम है, लेकिन इसके कारण वायु प्रदूषण और स्वास्थ्य समस्याएँ भी उत्पन्न होती हैं। पटाखों के कारण हवा में हानिकारक तत्व फैल जाते हैं, जो अस्थमा, एलर्जी, और अन्य श्वसन संबंधी रोगों को बढ़ावा दे सकते हैं। इन समस्याओं को देखते हुए, कई लोग अब पर्यावरण के अनुकूल दीयों के माध्यम से दिवाली मनाने पर जोर दे रहे हैं और आतिशबाजी से दूर रह रहे हैं।
वैश्विक स्तर पर दिवाली का उत्सव
दिवाली अब न केवल भारत में बल्कि विश्व के कई हिस्सों में बड़े धूमधाम से मनाई जाती है। अमेरिका, ब्रिटेन, कनाडा, सिंगापुर, ऑस्ट्रेलिया, और अन्य देशों में भारतीय प्रवासी समुदाय के लोग इसे बड़ी धूमधाम से मनाते हैं। इन देशों में दिवाली के दौरान सांस्कृतिक कार्यक्रम, रंगोली प्रतियोगिताएँ, और धार्मिक समारोहों का आयोजन किया जाता है। कई देशों में दिवाली को राष्ट्रीय अवकाश का दर्जा भी दिया गया है, जिससे भारतीय संस्कृति का प्रसार हो रहा है।
दिवाली केवल दीप जलाने का त्योहार नहीं है, बल्कि यह भारतीय संस्कृति का एक अभिन्न हिस्सा है। यह पर्व न केवल एक व्यक्तिगत आत्मज्ञान की यात्रा का प्रतीक है, बल्कि एक सामाजिक और सांस्कृतिक एकता का भी प्रतीक है। यह पर्व हमें सिखाता है कि अच्छाई की हमेशा जीत होती है और जीवन में प्रकाश का महत्व अपार है। दिवाली के माध्यम से हम अपने जीवन में सकारात्मकता, प्रेम, और समृद्धि को आमंत्रित करते हैं।
आप सभी को दिवाली की हार्दिक शुभकामनाएँ!